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मैं गढ़वाली नहीं, पर दिल में पहाड़ बसा है: गौरव दीक्षित

मैं गढ़वाली नहीं, पर दिल में पहाड़ बसा है: गौरव दीक्षित

ऋषिकेश:  कंपनी के सीईओ गौरव दीक्षित के मुताबिक वह बेशक गढ़वाली नहीं हैं, लेकिन उनके दिल में पहाड़ (हिमालय) बसता है। यहां उत्तराखंड में युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावना है। संसाधन इतने हैं कि कोई भी युवा बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए नया उद्योग स्थापित कर सकता है।

अनुभव बताते हुए गौरव दीक्षित ने कहा कि कोई युवा यहां अच्छा काम करना चाहता है, तो उसकी टांग खींची जाती है। खासकर यमकेश्वर क्षेत्र में उसे गिराने की कोशिशें की जाती हैं। अपील है कि स्थानीय युवाओं को सहयोग करें और हौसला बढ़ाएं।

उनका कहना है कि कोई युवा गांव में ही रहकर कुछ अच्छा करता है या फिर करने की कोशिश कर रहा है, तो शायद उन्हें खुद की राजनीति प्रभावित होती नजर आ रही है। ऐसा नहीं है कि यहां कुछ नहीं हो सकता है, मगर उन्हें लगता है कि यहां किसी युवा ने कुछ कर दिखाया, तो उनकी सियासत खतरे में आ जाएगी।

पीएम और सीएम ने दी मदद

गौरव दीक्षित बताते हैं कि भीमल, कंडाली और भांग (हेंप) के रेशों को निकलने के लिए पानी की खपत और मेहनत ज्यादा होती थी। लिहाजा, यहां प्राकृतिक रेशों पर काम बंद हो गया। राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है।

बताया कि हेंप व अन्य प्राकृतिक लकड़ी आदि से रेशे निकालने के लिए तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मशीन खरीद में 10 लाख रूपए की सहायता दी।

केंद्र की मोदी सरकार ने भी उनके प्रोजेक्ट को सराहा और इनाम के दौरान ढ़ाई लाख रूपए की मदद दी, जिससे दक्षिण भारत से रेशे निकालने के लिए मशीन खरीद कर लाई जा चुकी है।

दावा किया कि इन्हीं रेशों से बने उत्पादों का भारत में नेपाल से सालाना 500 करोड़ रूपए के सामान का आयात किया जाता है।

बताया कि जितना नेपाल में हेंप का रेशा है उतना, तो उत्तराखंड में ही है। राज्य चाहे, तो इस उद्योग को केपचर कर सकता है। यह यहां के लोगों के लिए इस उद्योग में रोजगार की बड़ी संभावना है।

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