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प्रदेश की प्राकृतिक धरोहर, बेनीताल बुग्याल भी हुआ निजी कब्जे का शिकार

प्रदेश की प्राकृतिक धरोहर, बेनीताल बुग्याल भी हुआ निजी कब्जे का शिकार

-वन विभाग, पर्यटन विभाग अथवा वहाँ की ग्राम पंचायत की सम्पत्ति निजी हाथों में कैसे चली गई,
यह गंभीर जाँच और कार्यवाही का विषय है:  स्वामी मुकुंद कृष्ण दा

                          बेनीताल बुग्याल

बेनीताल/चमोली:  उत्तराखंड सुंदर बुग्याल के साथ प्रदेश की प्राकृतिक धरोहर भी अब निजी कब्जों की भेंट चढ़ने लगे हैं। इनमें से एक अति खूबसूरत ताल और सौंदर्य लिए बुग्याल बेनीताल का ताजा मामला है। यहां के खूबसूरत बुगयालों पर किसी राजीव सरीन की निजी संपत्ति होने का बोर्ड नजर आ रहा है। परंतु प्रशासन से लेकर शासन तक किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया है। प्रदेश की धरोहर पर किसी निजी व्यक्ति के कब्जे का सरेआम बोर्ड लगा होना कई सवाल खड़े  करता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह व्यक्ति कई वर्षों से इन बुग्यालों पर कब्जा किये बैठा है।

वहीं प्रदेश में आरटीआई लोक सेवा के तहत वृक्षाबंधन अभियान चला रहे शैनिक शिरोमणी स्वामी मुकुंद कृष्ण दास जी ने इस मामले को उठाते हुए यहां के स्थानीय लोगों को आश्वासन दिया है कि प्रदेश की इस धरोहर को किसी भी निजि हाथ में नहीं जाने दिया जायेगा। साथ उन्होंने इस प्रकरण पर कई सवाल उठाते हुए शासन व प्रशासन से जांच कराने की मंग की है।

स्वामी मुकुंद कृष्ण दास जी ने जानकारी साझा करते हुए बताया है कि, मेरे संज्ञान में यह बात लाई गई थी के बेनीताल में पानी सूख गया है। वृक्षाबंधन अभियान के तहत बेनीताल के रिवाइवल के लिए (आरटीआई लोक सेवा) सरकार को क्या सुझा सकती है, यह जानने बेनीताल में पहुंचा। वहाँ जो देखा वह उत्तराखंड के लोगों के लिए चिंतित करने वाला कारण है।

इधर प्रदेश की राजनीती गर्त में जा रही है, उधर प्राकृतिक अनुपमा लिए इस ताल .बुग्याल पर अवांछित निजी कब्जा हो चुका है। कब्जाधारी इतने बुलंद हैँ कि उन्होंने सरकारी सड़क तक को खोदकर, बुग्याल में आगे जाने का रास्ता बंद कर दिया है। जिस ताल और बुग्याल को उत्तराखंड सरकार के वन विभाग, पर्यटन विभाग अथवा वहाँ की ग्राम पंचायत की सम्पत्ति होनी चाहिए थी, वह निजी हाथों में कैसे चली गई है, यह गंभीर जाँच और कार्यवाही का विषय है।

क्षेत्रीय ताकतों को स्मरण कराना चाहूंगा के बेनीताल में ही गैरसैण को राजधानी बनाने के लिए प्राण त्यागने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी आमरण अनशन पर बैठे थे, व वहाँ पर उनकी स्मृति में जनस्मारक भी बना हुआ है।

बेनीताल को बचाने के लिए बेनीताल संघर्ष समिति भी गठित है, परंतु वह सब निराश से दिखे। समिति के अध्यक्ष मगन सिंह जी से मेरी गंभीर वार्ता हुई है। उनसे वार्ता में यह स्पष्ट हुआ कि कर्णप्रयाग विधानसभा के पूर्व विधायक स्व0 डॉ अनसुया प्रसाद मैखुरी जी और वर्तमान विधायक सुरेन्द्र सिंह नेगी जी .दोनों के संज्ञान में विषय भलीभांति रहा था। दोनों की ही बेनीताल संघर्ष समिति के कार्यक्रम में भागीदारी भी रही थी और उनके द्वारा आश्वासन भी दिए गए। परंतु बेनीताल .बुग्याल का निजी सम्पत्ति का दावा करने पर सभी की गंभीर चुप्पी संदेहास्पद स्थिति को जन्म दे रही है।

उत्तराखंड की अवाम को जल्दी से जल्दी चेतने की आवश्यकता है। अन्यथा आपके हाथ में झुनझुना बजाने के अलावा कुछ भी नहीं रहेगा। अपनी ओर से बेनीताल के विषयगत करवाई जरूर बढ़ाउंगा . ताकि महाप्रभु के समक्ष जब उपस्थित होने जाऊँ तब गर्व से कह सकूँ . हमेशा की भांति न्यायसंगत लड़ाई में ही बना रहा।

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