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मातृभाषा गढ़वाली में पठन-पाठन से बढ़ेगी आगे: नरेंद्र सिंह नेगी

मातृभाषा गढ़वाली में पठन-पाठन से बढ़ेगी आगे: नरेंद्र सिंह नेगी

देहरादून : राजधानी में मंगलवार को विनसर प्रकाशन के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर मातृभाषा गढ़वाली लेखकों की एक गोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी में गढवाली में प्रकाशित प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम की पुस्तकों धगुलि , हंसुली , छुबकी , पैजबी और झुमकी के लेखकों तथा इन पुस्तकों में चित्रांकन करने वाले चित्रकारों ने प्रतिभाग किया। इस गोष्ठी में पाठ्यक्रम को तैयार करने वाले लेखकों और चित्रकारों को विनसर प्रकाशन द्वारा सम्मान राशि प्रदान की गयी। वहीं गोष्ठी का संचालन गणेश खुगशाल गणी ने किया। इसी दौरान लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने हिंदी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित उत्तराखंड ईयर बुक जारी की गई I

इसी दौरान उन्होंने कहा कि मातृभाषा गढ़वाली में पठन-पाठन से आगे बढ़ेगी। बच्चों को अपनी भाषा में पठन सामग्री उपलब्ध होगी तो वे अपनी भाषा के महत्वपूर्ण पक्षों को भी जान सकेंगे। इसके लिए गढ़वाली भाषा बोलने वाले समाज को आगे आना होगा। भाषा के काम सरकार के भरोसे नहीं हो सकते इसके लिए समाज को आगे आना होगा। कहा कि वर्तमान समय में निरंतर लिखे जाने की आवश्यकता है। लिखे जा रहे साहित्य का मानकीकरण आने वाले समय मे विद्वान करते रहेंगे अभी तो निरंतर कार्य किये जाने की आवश्यकता है।

गोष्ठी के अध्यक्ष इतिहासकार डॉ योगेश धस्माना ने कहा कि अधीनस्थ चयन सेवा आयोग में स्थानीय भाषाओं को स्थान देने से जहाँ परीक्षार्थी अपनी भाषा को पढ़ेंगे वहीं भाषा रोजगार से भी जुड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि जब भाषा रोजगार से जुड़ेगी तो उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है और भाषा में आवश्यकतानुसार प्राण प्रतिष्ठा भी हो जाती है।

वहीं गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री सेमवाल ने कहा कि भाषाएँ चुनाव जीतने का माध्यम नहीं हैं I उत्तराखंड में भाषाओं को लेकर संजीदगी से कार्य किये जाने की आवश्यकता है तभी भाषाएं दीर्घजीवी होंगी। कहा कि अपनी भाषाओं को बचाने की पहल अपने घर से करने की आवश्यकता है तभी भाषा जिंदा रह सकती है। गढवाली साहित्यिकार गिरीश सुन्द्रियाल ने कहा कि मातृभाषा गढवाली का प्राथमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम बहुत ही बेहतरीन है लेकिन दुर्भाग्य से इसे अभी तक पूरे क्षेत्र में शुरू नहीं किया जा सका है। दूसरी तरफ गोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए डॉ जगदम्बा प्रसाद कोटनाला ने कहा कि भाषा को समृद्ध किये जाने के दृष्टि से लेखकों द्वारा निरंतर लेखन किया जाना चाहिए।

गढवाली कवियित्री बीना बेंजवाल ने इस अवसर पर कहा कि प्राथमिक कक्षाओं के लिए तैयार किया गया गढवाली भाषा का पाठ्यक्रम एनसीईआरटी और एससीईआरटी के मानकों पर खरी हैं और पुस्तकों की पाठ्य सामग्री बहुत ही उत्तम है।